हे! मानव तू सूर्य सा उगना सिख

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सिख

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सीख हे!

तू सूर्य सा झुकना सीख,

ना कर अहं शिखर पर होने का ,

ना कर शोक समतल पर सोने का।

हे ! मानव तू नित नीर सा बहना सीख,

मशाल सा नित जलना सीख,

तू कर पावन चित अपना ,

तू कर अवसान अपने ऐब का।

हे ! मानव तू नीरज सा खिलना सीख,

तू नभ सा फैलना सीख,

तू कर खिदमत निश्छल तरु सा ,

तू कर शीतल बहती पवन सा।

हे ! मानव तू उठ उच्चा पर्वत सा ,

तू हो मुक्त इर्ष्या के भवन से,

तू हो मुक्त इस संसार के भ्रम से।

हे ! मानव तू पुष्प वाटिका सा महकना सीख ,

तू सच की अग्नि ज्वाला सा दहकना सीख।

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सीख हे!

तू सूर्य सा झुकना सीख।

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