आज भी कोई गुलाम हैं

आज भी कोई गुलाम हैं

अगर आज भी कोई गुलाम है…

अगर आज भी कोई दबा कुचला दलित है..

अगर आज भी कोई अपनी इक्ष्वाओ से वंचित हैं तो औरत है

क्युकी बाप नाम के रिश्ते ने आधी उम्र तानाशाही की

बार बार रिसते का दावा कर के रोका टोका..

फिर अपने जैसे ही तानशाह के हाथो सौपा.

वो भी एक रिसते का दावा किया और

हर बार एक औरत को एक पुरुष के रिसते..

को निभाने के लिए अपने सपनों को जलाने पड़े

एक औरत को रिसते के बंधन में बंध कर

उसके मान सम्मान उसकी मुस्कान को झोंका गया।

तो एक औरत आज भी गुलाम हैं।

वक्त

वक्त

ये वक्त का घेरा है, कहीं धूप कहीं छाव, कहीं दिन कहीं अंधेरा है, ये वक्त का घेरा है.

मिलेंगे कभी हम भी वक्त से, बात भी होगी मुलाकात भी होगी, जो नजरे फेर लेते हैं वही नजरे हमे देख कर हताशा भी होंगी निराश भी होंगी,

ये वक़्त का घेरा है, कहीं धूप कहीं छाव कहीं दिन कहीं अंधेरा हैं.

यू ही ये जमीन बंजर नहीं रहेंगी, कभी यहा भी बरसातें होंगी

खिलेंगे फूल इस चमन में भी, खुशबुआओ से महती रात भी होगी.

कहीं धूप कहीं छाव कहीं दिन कहीं अंधेरा है, ये वक्त का घेरा है.

ढालता हुआ सूरज

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सिख

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सिख

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सीख हे!

तू सूर्य सा झुकना सीख,

ना कर अहं शिखर पर होने का ,

ना कर शोक समतल पर सोने का।

हे ! मानव तू नित नीर सा बहना सीख,

मशाल सा नित जलना सीख,

तू कर पावन चित अपना ,

तू कर अवसान अपने ऐब का।

हे ! मानव तू नीरज सा खिलना सीख,

तू नभ सा फैलना सीख,

तू कर खिदमत निश्छल तरु सा ,

तू कर शीतल बहती पवन सा।

हे ! मानव तू उठ उच्चा पर्वत सा ,

तू हो मुक्त इर्ष्या के भवन से,

तू हो मुक्त इस संसार के भ्रम से।

हे ! मानव तू पुष्प वाटिका सा महकना सीख ,

तू सच की अग्नि ज्वाला सा दहकना सीख।

हे! मानव तू सूर्य सा उगना सीख हे!

तू सूर्य सा झुकना सीख।

औरत

औरत

कभी किसी का सम्मान बनती है तो,

कभी किसी की कामयाबी के पायदान बनती है,

तो फिर क्यू कहते हैं लोग तू औरत है न

तेरा दिल मर्दो की तरह मजबूत कहा,

घर संवारते संवारते खुद सजाना भूल जाती है

पर कभी मर्द बनाने का सलूक कहा

तू औरत है न तेरा दिल मर्दो की तरह मजबूत कहा ।