ये वक्त का घेरा है, कहीं धूप कहीं छाव, कहीं दिन कहीं अंधेरा है, ये वक्त का घेरा है.
मिलेंगे कभी हम भी वक्त से, बात भी होगी मुलाकात भी होगी, जो नजरे फेर लेते हैं वही नजरे हमे देख कर हताशा भी होंगी निराश भी होंगी,
ये वक़्त का घेरा है, कहीं धूप कहीं छाव कहीं दिन कहीं अंधेरा हैं.
यू ही ये जमीन बंजर नहीं रहेंगी, कभी यहा भी बरसातें होंगी
खिलेंगे फूल इस चमन में भी, खुशबुआओ से महती रात भी होगी.
कहीं धूप कहीं छाव कहीं दिन कहीं अंधेरा है, ये वक्त का घेरा है.

